न मिलना हुआ न ही बातें हो पाईं,
मेरे नाथ ने तुम्हें पास बुलाने में ऐसी शीघ्रता दिखाई,
फिर मेरे मन में तुम्हारे प्रति अपनेपन की ऐसी असीम भावना कहाँ से आई?
जो हर ९वीं जुलाई ने आंखें भिगोईं।
सच कहूं तो मेरा मन यह सोचकर अधिक व्याकुल है,
यदि मेरा मन असमर्थ है सहने में तुम्हारी जुदाई,
जिसकी असह्य वेदना आंसू बन आंखों में आई।
कैसी होगी उनकी विरह व्यथा मेरे भाई,
जिनके पुत्र, पति, पिता व भाई के रूप में तुमने ज़िन्दगी बिताई,
इसी कारण हर बार महादेव से हो जाती लड़ाई।