वो अमंगल घड़ी,
आज फिर से आई,
जब तुमने ली थी,
दुनिया से विदाई,
ग़म का सागर लिए,
लौट के आई ९ वीं जुलाई.
वो मंज़र सबकी आँखों में आया,
जिसने दिल पर खंज़र था चलाया,
उसने आंखों में आंसुओं
का सागर छलकाया.
बार बार पुछ रही ‘कल्याणी’,
निज नाथ से,
काहे को तूने ऐसा बज्र चलाया,
जिसने एक हरा भरा उपवन जलाया।