उचित और अनुचित परिस्थितियों के कारण अब पूरा देश तबाह हो रहा था. गलियां, गाँव, कस्बे और शहर जल रहे थे क्योंकि भारत के कुछ जानकार लोगों ने एक अप्रिय निर्णय लिया था एक छोटे से कमरे में बैठकर, और यह निर्णय था भारत के बंटवारे का. गलियां अराजकता और हिंसा की कहानी कह रही थीं. 

जहां सत्ता लोलुप लोगों के लिए एक अच्छा निर्णय था वही देश भक्त जो भारत से प्रेम करते थे उनके लिए यह एक अप्रिय एवं अस्वीकार्य निर्णय था. 

कुछ लोग स्वेच्छा से अपने पसंद के देश में चले गए और कुछ को दंगों की वजह से जाना पड़ा. 

ऐसा ही एक परिवार जो किसी भी कीमत पर भारत में ही रहना चाहता था. इसलिए स्वेच्छा से अपना अटारी बॉर्डर वाला पुश्तैनी मकान छोड़कर(जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था) शांतिपूर्ण तरीके से भारत जाना चाहता था. पर बच्चे विकास व रेखा अपना पुराना घर और दोस्त छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थे. 

बहुत समझाने पर जब वे दोनों तैयार हुए और परिवार ने जाने के लिए दरवाजा खोला तब कुछ मुस्लिम लोगों के समूह ने उन पर तलवार से वार कर दिया तलवार रेखा को लग गई जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गई. अब परिवार के सामने यह संकट था कि घायल बेटी के प्राण बचाए या बेटे को लेकर चले जाएं. तभी विमला जी बोली कुछ भी करो पर मेरे दोनों बच्चों को लेकर चलो वरना मैं नहीं जाऊंगी तब चरणजीत सिंह जी घायल बेटी को गोद में उठाए आगे बढ़ गए पीछे पीछे विकास का हाथ थामें विमला जी चल रही थीं. 

जैसे तैसे यह लोग चंडीगढ़ पहुंचे तब चरणजीत सिंह जी ने यही बसने का फैसला कर लिया और एक डॉक्टर के पास पहुंचे जिसमें रेखा को देखते ही मृत घोषित कर दिया. परिवार ने रेखा का क्रिया कर्म किया और घर की तलाश में निकल पड़े. 

घर मिला फिर तलाश थी काम की. पड़ोस में एक परिवार था जो अब तक इनके खाने पीने का ध्यान रख रहा था. 1 दिन चरणजीत जी ने कहा यदि कोई काम दिला दें तो अच्छा होगा इस पर तो पड़ोसी बुला मैं एक कपड़ा व्यवसाई हूं यदि आप चाहे तो मेरी दुकान पर काम कर सकते हैं चरणजीत जी तैयार हो गए.  

विकास भी अब पढ़ लिख कर एक अच्छी कंपनी में मैनेजर हो गया था पर कभी-कभी अपनी बहन रेखा को याद करके भावुक हो जाया करता था. 

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