• December 4, 2024
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आओ सुनाऊँ कहानी एक अजनबी की,

कैसे एक अजनबी पड़ जाता रक्त संबंधों पर भारी।

एक अजनबी जो मिलता पढ़ते-पढ़ते साथ में,

या फिर मिलता कार्यस्थल पर,

जिस मां ने गर्भ में पाला,

जिस पिता ने अपने सपने कर न्योछावर,

संतान के सपने किए साकार,

पल भर में वह अजनबी हो जाते,

उस अजनबी के आगे।

जीवन साथी जो मां-बाप चुनें तो,

मांगो की लंबी सूची थमा दी जाती,

कहकर वह तो अजनबी है।

खुद चुन कर ले आए तो,

सारी कमियां भी खूबी लगतीं,

उस अजनबी के आगे।

विधर्मी भी प्यारा लगता,

अपनी हठ के आगे,

रक्त संबंध भी फीके पड़ जाते,

उस नए संबंध के आगे।

फिर चाहे जान क्यों न गवा बैठें,

उस अंधे प्रेम जाल में फंस कर,

टुकड़ों में कट कर,

उस अजनबी के हाथों।

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