• December 4, 2024
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कल्पना तो एक जादू की छड़ी,

हर एक के पास होती पड़ी।

जिसके घूमते ही वातावरण आसपास का जाता बदल,

हो जाती व्यक्ति की अलग ही दुनिया खड़ी।

इसकी एक मिसाल पाठकों को दे ‘कल्याणी’,

इतना सुनते ही कल्पना के पंख लगा कर,

अपनी दुनिया में उड़ान ‘कल्याणी’ ने भरी।

बोली देखो यह है मेरी दुनिया,

चारों ओर वर्णमाला के अक्षर बिखरे पड़े थे,

मानो नीले अंबर में हों बिखरे जगमग सितारे,

चुन-चुन कर अक्षर उठाने लगी,

उनसे शब्द बनाने लगी।

शब्दों से मिलकर पंक्तियाँ बनीं,

कुछ ही समय में कविता सुनाने लगी।

फिर बोली ऐसी होती है एक कलम की दुनिया,

बताना जरूर कैसी लगी तुमको यह दुनिया?

जादू की छड़ी नहीं तो और क्या है यह कल्पना,

जो निर्जीव चीजों में भी करती जीवन का संचार,

इसी कारण मुझको है इससे प्यार।

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