आज फिर आंखें भर आईं,
७ अक्टूबर जो है आई.
रोके नहीं रुक रही रुलाई,
हाँ माना! कभी मिली नहीं आपसे,
ना ही कभी बातचीत हो पाई,
फिर भी इन आंसुओं को रोकने में आ रही कठिनाई.
आज आपकी बहुत याद आई विरल भाई.
जन्मदिन है आपका,
खुशी का है मौका.
नहीं चाहती आंसू बहाना,
आपका ना होना कारण है इन आंसुओं का.
होते जो आप तो खुशी खुशी देती बधाई,
आज आपकी बहुत याद आई विरल भाई.
महादेव के आगे होकर नतमस्तक करती मैं कामना,
सदा सुखी और स्वस्थ रहें आप,
जीवन में आए ना कोई कठिनाई.
आज आपकी बहुत याद आई विरल भाई.
आज तो हो गई नाथ से लडाई,
काहे को तूने इतनी कठोरता दिखाई?
एक बहन से काहे को छीना उसका भाई?
एक पत्नी से काहे को सुहाग निशानियाँ उतरवाईं ?
२ कोमल फूलों के सिर से काहे को पिता की छत्रछाया उठाई?
जिसके जन्म पर मात पिता की आंखों की चमक ने कभी घर में थी रोशनी फैलाई,
आज उसी की याद में मात पिता की आंखें काहे को छलकाईं ?
आज आपकी बहुत याद आई विरल भाई…