अवतरण ,दिवस
दिन ७ अक्टूबर का फिर से आया,
जो कभी आंगन में खुशियाँ लेकर आया था,
आज वही दिन परिवार को गम के सागर में डूबाने आया,
विरल भाई तुम्हारा अवतरण दिवस है आया।
तुम्हारा साथ ना होना सबको खल रहा है,
सबकी आंखों में अश्रु भर रहा है।
पूछ रही कल्याणी जग के संहारक से,
क्या सोच कर तूं ने अपना बज्र चलया,
क्यों बज्रपात से एक भरा पूरा संसार जलाया,
दिन ७ अक्टूबर का फिर से आया।